शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

बाप मुख्यमंत्री..बेटा उपमुख्यमंत्री...और मम्मी... ?

एक सज्जन मुझसे बहुत दिनों के बाद टकराए |हॉल-चाल के बाद बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा |वे भी राजनीती में थोडी बहुत जोर आजमाइश करते है तो मुझे भी राजनितिक गप्पबाजी (अपने शब्दों में कहे तो चिंतन )की आदत है और जब से मीडिया से जुडा तब से तो यह और हावी हो गया |खैर , हम दोनों जब भी मिलते है तो थोडी बहुत राजनितिक गप्पबाजी हो जाती है |
इस बार हमारी निगाह पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बदल पर पड़ी |
जनाब ने कहा -भाई मजा तो राजनीती में ही है ,देखो अपने पंजाब दा पुतर प्रकाश भाई को ,क्या कलेजा रखता है जवान एक ही झटके में बेटा को उपमुख्यमंत्री बना डाला ,है कोई माई का लाल जो उंगली उठा सके |न उसके दल ने रोका और नही उसको समर्थन दे रहे पीएम इन वेटिंग वालों ने |रोकते भी तो कैसे ?सिर पर लोकसभा चुनाव जो है |
मैंने कहा -हा भई, बात तो सही है |वो कुछ भई कर सकते है उनका नाम भई तो देखो -उनके नाम में सिंह और बादल दोनों है |कहते है जो बादल गरजते है वो बरसते नही है लेकिन यहाँ तो यह है की वह सिंह की तरह गरजते भी है और बादल है तो बरसते भी |मुझे लगता है अपने दल वाले इसलिए नही बोले होंगे क्योकि वे सिंह जो ठहरे |भई जंगल का राजा तो सिंह ही होता है न |हुकूमत तो उसी की चलेगी ....और पीएम इन वेटिंग वालों ने सोचा होगा की कही ये बादल येन वक्त पर बरस गया तो हमारें बने बनाये नक्शे पर पानी फ़िर जाएगा और हम वेटिंग में ही रह जायेंगे |सो भई बड़ा पद पाने के लिए छोटा त्याग तो करना ही पड़ेगा न |इसलिए बना लो भाई बेटे को उपमुख्यमंत्री भी बना लो |
तभी बीच में वे बोल पड़े -लेकिन भाई एक कमी रह गई बाप मुख्यमंत्री ,बेटा उपमुख्यमंत्री लेकिन मम्मी को कोई पद नही दिया ....
मैंने कहा घबराओ नही यदि यह बादल फिर गरजा तो इसे महिला सशक्तिकरण के नाम पर एक दिन मम्मी को भी गृह मंत्रालय की कमान सौप दी जायेगी और एसा ही चलता रहा तो पुरा खानदान मंत्री बन कर घूमता नजर आएगा ...पुरी सरकार में सिर्फ़ सिंह बादल ..सिंह बादल प्रकाशित (चमकते ) नजर आयेंगे |

डॉक्टर अमरेन्द्र कुमार सेंगर ने कहा

मेरे एक पोस्ट पर भाई अमरेन्द्र जी की एक टिप्पडी इस कविता के रूप में आई जो मुझे अच्छी लगी इसे आपके लिए भी प्रस्तुत कर रहा हु

यह शोक का दिन नहीं,यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।यह युद्ध का आरंभ है,भारत और भारत-वासियों के विरुद्धहमला हुआ है।समूचा भारत और भारत-वासीहमलावरों के विरुद्धयुद्ध पर हैं।तब तक युद्ध पर हैं,जब तक आतंकवाद के विरुद्धहासिल नहीं कर ली जातीअंतिम विजय । जब युद्ध होता हैतब ड्यूटी पर होता हैपूरा देश ।ड्यूटी में होता हैन कोई शोक औरन ही कोई हर्ष।बस होता है अहसासअपने कर्तव्य का। यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,वास्तविकता है।देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,एक कवि, एक चित्रकार,एक संवेदनशील व्यक्तित्वविश्वनाथ प्रताप सिंह चला गयालेकिन कहीं कोई शोक नही,हम नहीं मना सकते शोककोई भी शोकहम युद्ध पर हैं,हम ड्यूटी पर हैं।युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,कोई मुसलमान नहीं है,कोई मराठी, राजस्थानी,बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।हमारे अंदर बसे इन सभीसज्जनों/दुर्जनों कोकत्ल कर दिया गया है।हमें वक्त नहीं हैशोक का। हम सिर्फ भारतीय हैं, औरयुद्ध के मोर्चे पर हैंतब तक हैं जब तकविजय प्राप्त नहीं कर लेतेआतंकवाद पर।एक बार जीत लें, युद्धविजय प्राप्त कर लेंशत्रु पर।फिर देखेंगेकौन बचा है? औरखेत रहा है कौन ?कौन कौन इस बीचकभी न आने के लिए चला गयाजीवन यात्रा छोड़ कर।हम तभी याद करेंगेहमारे शहीदों को,हम तभी याद करेंगेअपने बिछुड़ों को।तभी मना लेंगे हम शोक,एक साथविजय की खुशी के साथ। याद रहे एक भी आंसूछलके नहीं आँख से, तब तकजब तक जारी है युद्ध।आंसू जो गिरा एक भी, तोशत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।इसे कविता न समझेंयह कविता नहीं,बयान है युद्ध की घोषणा कायुद्ध में कविता नहीं होती।चिपकाया जाए इसेहर चौराहा, नुक्कड़ परमोहल्ला और हर खंबे परहर ब्लाग परहर एक ब्लाग पर।- कविता वाचक्नवी साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
November 28, 2008 10:53

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

ये टीआरपी किसी दिन पुरा देश उद्वाएगी

जिस तरह इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने मुंबई बम धमाके की कवरेज की उसे देख कर ये कहना अतिशयोक्ति नही होगी की टीवी चैनल्स की टीआरपी की भूख किसी रोज देश ही उडवा डालेगी ......जी हां मुंबई की घटना को इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने टीआरपी के चक्कर में एस कदर दिखा डाला की आतंकवादी टीवी देख कर ही निशाने दागने लगे ...जाने अंजाने में मीडिया ने आतंकवादियों की मदद कर डाली...अब भी वक्त है मीडिया को कम से कम देश हित के मुद्दों का ख्याल करना चाहिए ...और जहा देश हित की बात आए वहा तो कम से कम संवेदनशीलता दिखानी चाहिए .....मीडिया को समझना चाहिए की आप ये सी चीजे दिखा कर कही उनकी मदद तो नही कर रहे ....आप जानते है की ताज देश का जन मन होटल है वहा टीवी की सुविधा भी है एसे में मीडिया के लोगो ने तनिक भी ये विचार नही किया ये कवरेज आतंकवादी भी देख रहे होंगे ....शर्मनाक इस्थिति तो तब हो गई जब इसकी आलोचना के बाद दो एक चैनल्स के संपादको ने ये कह डाला की टीवी में कैसे कम होता है ये लोग क्या जाने ....लेकिन उन्होंने ये नही सोचा की देश के बारे में सोचना उनकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए......देश के बड़े मीडिया समूहों को इस ओअर ध्यान देना चाहिए......

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

कही देश संयम मंदी की चपेट में न आ जाए........!

जब भी देश में कोई आतंकी हमला होता है हमारे देश के शीर्ष नेताओ से लेकर पीएम् तक एक ही बात कहते नजर आते है की संयम से काम लेने की जरुरत है देश में लगातार बम धमाके होते जा रहे है और अभी तक बस एक ही बात कही जाती है की संयम से कम लीजिये ,धैर्य से कम लीजिए बनारस में धमाके हुए तो यही बातें कही गई ,गुलाबी नगरी जयपुर को लहूलुहान किया गया तो भी यही वाक्य ,अहमदाबाद दहल उठा तो भी यही राग आलापा गया ,देश की राजधानी दिल्ली जब थर्रा उठी तो सुर बदले राग वही रहा ......... अब देश की आर्थिक राजधानी में बम धमाके हुए है तो भी जनता को संयम से काम लेने की नसीहत दी गई पी एम साहब जिस हिसाब से भारत की जनता को संयम की जरुरत पड़ रही है ....उसके लिए भी आपको एक फंड की व्यवस्था करनी चाहिए ......जो लोगो को केवल संयमी बनाने पर खर्च किया जाए ......भारत की जनता को एसे माहोल में संयमित रहने के लिए ट्रेंड करेइसकी देख रेख के लिए एक विभाग भी बनाया जाए संयमित विभाग इसका काम केवल संयमित रखना ही होगा और हा पी एम साब ये ध्यान रखियेगा की इस विभाग का मंत्री जो बने कम से कम ओ ख़ुद तो संयमित रहे ...नही तो पता चला की अन्य विभागों की तरह ओ भी संयम खो बैठा और भांड का बंदरबांट कर बैठा तो .............मुझे तो लगता है आपने आपने कार्य कल में जीतनी नसीहते संयम रखने की दे डाली है उससे देश आर्थिक मंदी की तरह किसी दिन संयम मंदी का शिकार न बन जाए ....हां जनाब आप देखिये की यदि इसी तरह हमले होते रहे तो मंदी की डिमांड बढ जायेगी देश में ....और आने वाले दिनों में देश पर संयम की मंदी का खतरा न मडराने लगे ......लेकिन एक बात तय है जिस दिन देश की जनता ने इस मंदी का सामना किया और ......आने वाले चुनाव में आपकी तरफ़ लपक पड़ी तो पी एम साहब !आपका सेसेक्स उसी दिन नीचे आ जाएगा और धरातल पर नजर आयेंगे .....और हा चुनाव आने वाला है इस लिए जनता को सब्र और संयम का पथ पड़ते रहिये .....ध्यान रखियेगा कही एन वक्त पर जनता के संयम का बाँध न टूट पड़े ....

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

अबकी दीपावली पर दीप नही........


अबकी दीवाली पर दीप जलाने की जरूरत नही है इस दीवाली पर आतंक को जलाने की जरूरत है आतंकियो को जलाने की जरूरत है जिनकी वजह से लाखों माओ की गोद सुनी हो गई ,लाखों बच्चे आनाथ हो गए लाखों सुहागिनों का सुहाग छीन गए आपके और हमारे इर्द गिर्द मौजूद गद्दारों को जलाने की जरूरत है उन को जलाने की जरूरत है जो रिश्वत खोर है भ्रस्ताचारी हैराज ठाकरे जैसे देश द्रोहियों को जलाने की जरूरत है जो भाषा के नाम पर नफरत फैला रहा है दिलो को तोड़ने का काम कर रहा है देश को खंडित करने का काम कर रहा है,एसे ठेकेदारों को जलाने की जरूरत है जो धर्म के नाम पर जहर के बिज बो रहे है,उनको जलाने की जरूरत है जो लोग जाति के नाम पर समाज में दीवार खड़ी कर रहे है ,जाति के आधार पर समाज को विखण्डित करने का काम कर रहे है,वास्तव में दीपावली सही अर्थों में अंधकार रूपी बुरियो को ख़त्म कर अच्छाइयों की तरफ़ ले जाने का त्यौहार है इसलिए इस बार दीप नही समाज के एसे गद्दारों को जलाने की जरूरत है जो देश में हमेशा उथल पुथल उत्पात मचाये रहते है दिलों को जोड़ने के बजे तोड़ने का काम करते रहते है जब इस देश में दिलो को जोड़ने वालो को नही रहने दिया गया तो दिलो को तोड़ने वालो समाज को बाटने वाले इन आतातैयो को भी इस देश में रहने का कोई हक़ नही है तवी हमारे पर्व की सार्थकता है अन्यथा मगन रहिये पठाके में ,घर में कौन रोकता है ये दीपावली भी उसी तरह बीत जायेगी जैसी पिछली गुजरी थी

दीपावली:दिल नही,दीप जलाये


दीपावली एक खास पर्व है हर बार ये पर्व आता है दीप जलते है घर द्वार शहर महानगर संसार सर कुछ जगमगा जाता है चारो ओर उजाला हो जाता है बहुत गर्व के साथ लाखो के पठाखे फोड़ कर हम खुशी का इजहार कर लेते है हम कभी भी अपने अन्तरमन की ज्योति को जलाने की कोशिश नही करते हम बर्षों से दीपावली मानते है लेकिन वास्तव में आज तक हम दीपावली का वास्तविक अर्थ नही समझ पाए हैदीपावली केवल इस लिए नही है की हम सिर्फ़ दीप जलाये मीठा खाए और पठाखे जलाये आज जरूरत है एक संकल्प की जो केवल दीप जलाने का नही बल्कि दिलो को जोड़ने का भी हो समाज में उठ रही नफ़रत की दीवारों को ख़त्म करने का संकल्प लेना होगा,आज ये भी जरूरत है की हम सबकी समृद्धि की कामना करे क्योकि जब सब समृद्ध होंगे तभी हमारी समृद्धि भी होगी कई लोग लोगो को दिखने के लिए दीपावली मानते है उनके दिलो को जलाने के लिए दीप जलाते है इसलिए इस बार लोगो के दिल नही दीप जलाये साथ ही अपने दिलों में दबे अंधकार को भी भागने का प्रयास करे

सोमवार, 15 सितंबर 2008

और गांधीजी को अंग्रेजी भूल गई ...


और गांधीजी को अंग्रेजी भूल गई .... आप सोच रहे होंगे की दक्षिद अफ्रीका में वकालत करने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी कैसे भूल सकती है ओ भी महात्मा गाँधी जैसे व्यक्तित्व को लेकिन हम आपको बता दे की अगर कोई जानबूझ कर अंग्रेजी भुलवाना चाहे तो क्या कहेंगे आप जी हाँ महात्मा गाँधी ने भारत के आजाद होने के बाद एक अंग्रेज पत्रकार द्वारा अंग्रेजी में प्रश्न पूछे जाने पर जबाब देने से इंकार कर दिया और उसे हिन्दी सिखने की नसीहत दे डाली गांधीजी ने अपना आदमी भेज कर कहा की जा कर उनसे कह दो की गाँधी को अंग्रेजी भूल गई है